Saturday, 5 July 2008

ऐसे में कहां जायेंगे यार-हिंदी शायरी

कहीं जाति तो कहीं धर्म के झगड़े
कहीं भाषा तो कहीं क्षेत्र पर होते लफड़े
अपने हृदय में इच्छाओं और कल्पनाओं का
बोझ उठाये ढोता आदमी ने
उड़ने से पहले ही अपने पर खुद ही कतरे
शहर हो गये हैं जैसे युद्ध के मैदान
किले बन गये हैं रहने के मकान
पत्थर फिर बने लगे हैं हथियार
ऐसे में कहां जायेंगे यार
कौन करेगा किससे प्यार
फाड़ने लगे हैं लोग एक दूसरे के कपड़े
.................................

चारों तरफ प्रेम और भक्ति का
गूंजता स्वर है
पर किसी के दृदय में नहीं
दिखता श्रद्धा का भी पलभर है
रेडियो पर बजता है संदेश
टीवी पर भी दिखते तरह-तरह के भेष
अखबारों में भी पहनाते
प्रेम और भक्ति को सुंदर गणवेश
पर फिर भी जमीन पर
उनका अस्तित्व नजर नहीं आता
आदमी ही आदमी को काटने जाता
विरोधाभासों में हैं जिंदगी
आदमी चलता कहीं
उसकी होती कहीं और डगर है
...........................

Saturday, 7 June 2008

बेपरवाह होकर चलते वही अपनी मंजिल पाते-हिंदी शायरी

अपनी इज्जत की खातिर लोग
कभी दिखाते हैं दरियादिली तो
कभी तंगदिल हो जाते
खुशफहमी में जीते हैं सभी इंसान कि
दुनियां वाले उनकी तरफ ही देखते है
दूसरों की नजरों की परवाह करते
अपनी राह से हटा लेते नजर
इसलिये चलते चलते ही भटक जाते

देखते हैं मस्तराम ‘आवारा’
अपनी नजरों से अपने को देख सकें
ऐसा कोई आईना बना नहीं
दूसरों की नजर का ख्याल कर
क्यों अपने अंदाज बदल जाते हो
अपनी राह-दर-राह से भटके जाते हो
यह गलतफहमी है कि
जैसा हम अपने को देखते हैं
वैसे ही हमें देखता सारा जमाना
भला कहीं हम किसी को उसकी नजरों देख पाते
अपनी आंखों पर चढ़ा है जैसी अक्ल का
वैसा ही दृश्य देख कर अपना ख्याल बनाते
यहां सभी खोय हैं अपने में
कौन किसको देखता है
दूसरों के ख्याल की परवाह कर
सभी तबाही की राह चले जाते
जो हैं बेपरवाह वही अपनी मंजिल तक पहुंच पाते

Saturday, 31 May 2008

छद्म नाम से मोहब्बत मोबाइल हो गयी-हास्य व्यंग्य

एक प्रेमी से उसके मित्र ने पूछा-‘तुम्हें यकीन है कि तुम्हारी प्रेमिका तुमको सच्चा प्यार करती है?’
उसने कहा-‘हां, इसमें मुझे कोई संदेह नहीं है। वह अब किसी दूसरे को प्यार कर ही नहीं सकती।’
मित्र ने कहा-‘उसे आजमा कर देख लो। तुमने उसे मोबाइल का उपहार दिया है। तुम अपना दूसरा मोबाइल खरीदकर किसी छद्म नाम से प्रेम करके देख लो, और तमाम तरह के उपहार प्रलोभन दिखाओ तब पता चलेगा कि वह वास्तव में तुमसे प्रेम करती है कि नहीं।’
प्रेमी को अपने मित्र का सुझाव पसंद आया। उसने अपने मोबाइल पर छद्म नाम का दूसरा प्रेमी बनने का विचार किया। उसने कुछ दुकानों से उसके घर गिफ्ट भी भिजवाये जिनमें एक दूसरा मोबाइल भी था।
धीरे-धीरे उसने देखा था कि दूसरे मोबाइल से उसके दूसरे नंबर पर फोन अधिक आने लगे और पुराने मोबाइल से वही करता पर आते प्रेमिका ने तो बंद ही कर दिये। एक दिन उसने दूसरे प्रेमी के रूप में उससे पूछा-‘मैंने सुना है कि तुम्हारा कोई दूसरा प्रेमी भी है।’
प्रेमिका ने कहा-‘वह तो टाईम पास है। मैं सच्चा प्रेम तो तुमसे करती हूं। उसने तो मुझे बस एक मोबाइल उपहार में दिया है, तुम तो इतने सारे उपहार देते हो।’
प्रेमी ने कहा-‘पर तुमने मुझे अभी देखा ही नहीं तो कैसे कह सकती हो कि मैं सच्चे प्यार के लायक हूं?’
प्रेमिका ने कहा-‘‘अरे, आजकल किसी की शक्ल सूरत नहीं देखी जाती। बस, आदमी की नीयत देखी जाती है और वह केवल उपहार देने से ही पता लग जाती है।’
प्रेमी ने पूछा-‘‘फिर वह तुम्हारा प्रेमी! उस बिचारे का क्या होगा?
प्रेमिका ने कहा-‘कहां उस कंगाल की बात लेकर बैठ गये। उसको तो मैंने फोन करना ही बंद कर दिया है। उसके मोबाइल में दूसरा सिम डालकर मैंने अपनी बहिन को दे दिया है। उसको मैंने अपने घर का पता भी गलत दिया था। वह अब मुझसे मिल ही नहीं सकता।’
प्रेमी ने पूछा-‘‘तुम्हारा सही पता क्या है?’
प्रेमिका ने कहा-‘पहले मिल लो। जब अच्छी जान पहचान हो जायेगी। तब अपना असली पता दूंगी। मैंने अपने पुराने प्रेमी को ही यह पता इसलिए नहीं दिया कि वह मेरे समझ में नहीं आ रहा था। बड़ी मुश्किल से उसने कहीं से यह पुराना मोबाइल गिफ्ट में दिया था।’
प्रेमी की आंखों में आंसू आ गये। उस बिचारे ने तो नया मोबाइल गिफ्ट में दिया था। वह रोता हुआ अपने उसी मित्र के पास पहुंचा और उसे सारी कहानी सुनाई। मित्र ने कहा-‘अब तुम रो क्यों रहे हो। मैंने कहा था कि तुम धोखा खा रहे हो।‘

प्रेमी ने रोते हुए कहा-‘‘उसने मुझे धोखा दिया। इससे तो धोखे में रहना ही ठीक था। मुझे अपना छद्म नाम रखकर अपनी औकात नहीं देखना चाहिए थी। यह मोबाइल नहीं होता तो मेरी मोहब्बत भी मोबाइल नहीं होती।’

Sunday, 13 April 2008

देखने का होता है अपना-अपना नजरिया-हिंदी शायरी


देखने का होता है
नजरिया अपना-अपना
किसी के लिये कोई चीज हकीकत है
किसी के लिये होती है सपना
कोई कार पर कार बदलता है
कोई पैदल ही चलता
उसके लिए अपनी कार होती है सपना
कोई रहता है ऊंची इमारतों और
चमकदार महलों में
तो कोई ईंट और पत्थर ढोकर
उनका निर्माण कर मजदूर
अपनी झौंपड़ी में रहने चला जाता
उसके लिऐ महल में रहना होता एक सपना
इस जहां में जिसकी नींद अपनी है
और अपनी देह पर भी होता बस
सच के साथ होता है जिनका नाता
वह कभी भी नही देखते सपना
जो कभी नही होता अपना
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हम तो समझते थे उनको अपना
पता न था कि उनकी नजर में गैर हैं हम
अपने दिल का सच बताकर वह
छोड़ कर चलते बने
राह में अकेला खडे रह गए फिर हम
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Saturday, 12 April 2008

दिखावे के लिए अमन का पैगाम-हिंदी शायरी

आदमी देखना चाहता
हर चीज पर लिखा अपना नाम
जिंदगी भर करता इसके लिए काम
अपनी ख्वाहिशें पूरी करने के लिये
कई जगह टेकता अपना मत्था
ले जाता अपने घर के लोगो का जत्था
नख से शिख तक माया का मोह
मूंह में जपता राम
देखें हैं मस्तराम आवारा ने
इस दुनियां में कई लोग
जिम्मा है जो दुनिया बनाने वाले का
सब को अपनी जिंदगी बिताने के लिए
कुछ न कुछ देना सिक्कों के दाम
बंदा उसे समझ लेता अपना काम
एक-दो होता तो हम समझा लेते
यहां तो हर शख्स खुशफहमी में ले रहा
अपनी जिंदगी की सांस
सब मिल जाता है पर
फिर भी मन में रहती कुछ और पाने की फांस
ऐसे ही बिता देता जिंदगी
ऊपर वाले की माला जपता हर कोई
दिखावे के लिये देता अमन का पैगाम
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Saturday, 5 April 2008

जिन्दगी का सच कोई नहीं जानता-हिंदी शायरी

कुछ सवालों के जवाब नहीं होते
कुछ सवाल ही अपने आप में जवाब होते
लाजवाब हैं वह लोग जो
सवालों के जाल से दूर होते
किसी के सवाल को दो जवाब
कुछ का कुछ समझ जाये
तो फिर बवाल मच जाये
न दो जवाब तो भी मुसीबत
ऐसे में बेहतर हैं न किसी की सुने
न किसी को कुछ बताएं
जिन्दगी के कई सवाल ऐसे हैं
जिनके जवाब जो दिए जाते हैं
वह कभी नहीं होते
कुछ वहम तो कुछ धोखे होते
सच कोई नहीं जानता जिदगी का
जो जानते हैं वह सवालों से परे होते
जो देते हैं जवाब वह तो खुद ही भटके होते
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खडा हूँ खामोश इसलिए कि
भीड़ से पूछूंगा कोई सवाल तो
लोग अनाडी समझेंगे
किसी से समझ नहीं मिल सकती
दूंगा किसी के सवाल का जवाब तो
फिर कोई दूसरा सवाल करेंगे
इसलिए ओढ़ ली है खामोशी
मेरे कहने से कोई अपना रास्ता तो
लोग कभी बदलेंगे नहीं
वह तो अपने रास्ते वहमों और धोखे की
खदानों में ढूंढते हुए भटकेंगे
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Wednesday, 2 April 2008

माफ़ करना भाया-हिंदी शायरी

प्रेमी ने लिखा अपनी प्रेमिका को
''भूल जाना मुझको
मेरे दिल में अब किसी और का चेहरा भाया
अब तो तुम्हारी जगह उसका नाम
मेरी जुबान पर आता
नहीं चल सकता तुम्हारे साथ अधिक
हालांकि मैंने अपने दिल को खूब समझाया''

नीचे उसने लिखा
''देखो अप्रैल फूल बनाया''
दूसरे दिन जवाब आया
''तुम्हारे सन्देश से
उड़ गए थे होश हमारे
अप्रैल फूल तो लिखा बाद में
नजर आया
अकेले होने की टेंशन में
अपने वेटिंग में खडे अपने एक
दोस्त को प्रेम सन्देश भिजवाया
अब तो वहाँ से स्वीकृति का सन्देश आया
अब तुम हमें माफ़ करना भाया''
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Sunday, 30 March 2008

तरक्की नाम की चिडिया संवेदनशील हो गयी है-हिंदी शायरी

तरक्की आख़िर किस चिडिया का हैं नाम
जिसके उड़ने की चर्चा आम हो गयी है
जमीन पर कभी आती क्यों नहीं
या ऊंची इमारतों में रहने की आदी हो गयी हैं
डरती होगी नीचे उतरने में
क्योंकि दिखाई देंगे
भूखे नंगे लोग रास्ते में
रोटी और प्यास से तड़पते हुए
बीमार अस्पताल के बाहर टपकते हुए
बेकार युवकों का झुंड
नौकरी के तलाश में भटकते हुए
आम आदमी के पाँव सड़क के
गड्ढों में अटकते हुए
शायद यह सब नहीं चाहती देखना
तरक्की नाम की चिडिया संवेदनशील हो गयी है

Saturday, 22 March 2008

आदमी के मिजाज नहीं बदलते-हिंदी शायरी

बहार के मौसम में
पेडों पर पते चले आते
और पतझड़ में बिछड़ जाते हैं
कभी पेडों को पते आने पर
खुश होते नहीं देखा
उनके बिछड़ने पर रोते नहीं देखा
पर इंसानों की आदत हैं
हर मौसम में रोना
इसलिए उसकी जिन्दगी में
हमेशा पतझड़ ही देख पाते हैं
जिनके यहाँ आता है बसंत
वह भी उसे छिपाते हैं
भय के साथ सोता
आशंकाओं के साथ उठता इंसान
इसलिए कभी खुश नहीं देख पाते हैं
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मौसम की तरह
जिन्दगी के दौर भी बदलते हैं
पर इंसान के ख्यालों में
कभी नहीं आता बदलाव
इसलिए उसकी जिन्दगी के
मिजाज कभी नहीं बदलते हैं
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Friday, 21 March 2008

असल में दानवता सब जगह खेले-हिंदी शायरी

प्रहलाद ने तो की थी भक्ति
वैभव को दी थी चुनौती
तपस्या से मिली थी उसे शक्ति
पर आज तो वैभव की रौशनी
देखकर सब अंधे हो जाते हैं
उसकी शक्ति के आगे सब लाचार नजर आते हैं
चकाचौंध में युवक-युवतियों की आसक्ति
मन में व्यसनों की चादर ओढे हैं
होलिका भी ऐसी चादर क्या लाती
जो धीरे-धीरे आज के प्रह्लादों को जलाती
भक्ति की जगह पैदा करती आसक्ति
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देवताओं के चमत्कार के
नाम पर सब जगह लगते हैं मेले
पर वहाँ भी पहुंचते दानवों के चेले
देवता की मूर्ति हो या प्रसाद
बिकतीं हैं मंहगे
वाहन खडा करने पर लेते दूना किराया
अन्दर हैं देवता और बाहर है दानव उससे सवाया
देवत्व तो नाम हो जाता है
असल में तो दानवता सब जगह खेले
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Saturday, 15 March 2008

बिना यकीन के दुनिया चल नहीं सकती-हिंदी शायरी

उनका चेहरा देखकर ही हमने
उन पर यकीन कर लिया
उनकी नीयत से मुहँ फेर लिया
जो फेरा उन्होंने मुहँ
अपने किये हुए वादे भूल गए
हम फिर भी करते रहे उम्मीद
पर कभी वादे भी पूरे किये जाते हैं
इरादे कितने भी हों
बिना मतलब के काम भला
इस जमाने में कभी किये जाते हैं
इस जमाने में विश्वास के साथ
कई जगह धोखा भी होगा
हमने यह सच देख लिया
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यकीन कर कई बार
जिन्दगी में हारे हैं
पर फिर भी नहीं टूटता
यकीन करने का सिलसिला
मजबूरी के मारे हैं
बिना यकीन के यह दुनिया
चल ही नहीं सकती
क्योंकि कई लोगों का चलता है
दूसरों को धोखा देने से काम
यही सोचकर हम हारे हैं
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Friday, 14 March 2008

पहले अपना इलाज करवा लो-हिंदी शायरी

आशिक ने लिखा
''अपने खून की स्याही से
यह प्रेम पत्र लिख रहा हूँ
इसे स्याही न समझना
अपना इश्क अपने दिल के टुकड़े पर
लिख कर इजहार कर रहा हूँ
इसे कागज़ मत समझना
तुम मुझे प्रेम कर आजमा लो''

लौटती डाक से जवाब आया
''अपना खून चेक करवा लो
ख़त में सब लिखा हुआ
नीली स्याही जैसा लगता है
हस्ताक्षर हैं काली स्याही जैसे
ताज्जुब है कि तुम्हारा दिल भी
कागज की तरह लगता है
दूसरा ख़त बाद में लिखना
पहले अपना इलाज करवा लो
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Tuesday, 11 March 2008

मामला दहेज़ का है-हिंदी शायरी

क्या वह दिन गए जब
कहा जाता था कि
माता-पिता भगवान् होते हैं
अब तो ऐसा लगता है सबके लिए
बच्चे एक तरह से सजावटी पकवान होते हैं
बेटी को तो गिरा देते हैं गर्भ में ही
जवान बेटे की शादी में भी
चाहते हैं ढेर सारा दहेज़
कर देते हैं उसे बूढा
उसकी ख्वाहिशों का करते हैं कत्ल
तीस की उम्र पार कर भी उनके बेटे
उनकी नजर में गबरू जवान होते हैं
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दहेज़ की लालच में
नहीं कराते माता-पिता
अपने लड़के की नहीं कराते शादी
उम्र निकलती जाती हैं
माँ-बाप की नजर रहती है माल पर
बेटा इधर-उधर नजरें मारता है
कहीं कहीं करता छेड़छाड़
कहीं करता मारधाड़
कहीं जख्म करता कहीं पाता
करता समाज और अपनी बर्बादी
मामला केवल दहेज़ का ही है
मिले तो, ठीक नहीं तो
निष्ठुर माता-पिता नहीं करते लड़के की शादी
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Monday, 10 March 2008

इंसान क्यों शेर कहलाना चाहता है-दो हिंदी क्षणिकाओं

इंसान कभी इंसान बनकर नहीं रहना चाहता
किसी पराये का भला करता नहीं
किसी बेबस को सहारा देता नहीं
किसी के मन के दर्द का हाल लेता नहीं
पर फिर भी फरिश्ता कहलाना चाहता
पंजों में नाखून नहीं है जो
किसी पर अत्याचार होने से रोक सके
पंजों में वह ताकत नहीं है कि
किसी के कत्ल करने से पहले टोक सके
करता है तब
जहर भरे शब्दों की बौछार
लोग डरें और सहम जाएं
अपने इलाके की सीमाओं को जानता नहीं
पाल लेता हैं इंसानों के भेष में भेडिये
कर देता हैं खडा अपनी गुफा के बाहर पहरे पर
और इलाके का शेर कहलाना चाहता है
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अपने इलाके का शेर कहलाते हुए
कुछ लोगों का सीना फूल जाता है
उन्हें पता नहीं कितना भी बड़ा शेर हो
कभी न कभी उसका शिकार हो जाता है
कोई दूसरा शेर न करें तो
ऊपर वाले का तीर चल जाता है
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Sunday, 9 March 2008

फिर भी तमाशा चल रहा है-हिंदी शायरी

चमकता हुआ झूठ सब तरफ चमक रहा है
तेज रौशनी से लोगों की आँखें
चकाचौंध में बंद हो जातीं
पूरे समाज का कदम बहक रहा है
सड़कों पर हो गयी है खामोशी
तमाशों का काम अब बंद कमरों में हो रहा है

मदारी अब रास्ते में आवाज देकर
नहीं बुलाता लोगों की भीड़
बन्दर-बंदरिया का नाच देखने के लिए
इंसानी बुत तैयार हैं
अपने करतब दिखाने के लिए
अब मशीने आवाज करतीं हैं
लोगों को बुलाने के लिए
शोर मचता है कई दिन पहले
कहते हैं शो पर
तमाशा चल रहा है
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अपने दुख भूल जाना चाहिए
जब इतने तमाशे दिखाए जा रहे हैं
पर आम आदमी के दुख दर्दों का
सिलसिला फिर भी नहीं थमता
किसी भूखे का पेट बिना रोटी के बिना
नहीं भर सकता
रोगी का इलाज बिना दवा के नहीं हो सकता
ताज्जुब होता है यह देखकर
फिर भी आजकल के मदारी
तमाशों से घर भरते जा रहे हैं
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Saturday, 8 March 2008

जब तक रहेंगे असलियत से अनजाने-हिंदी शायरी

जश्न मनाने के लिए लोग ढूंढते बहाने
खाली हैं प्यार से दिल,
आंखों से लगते आंसुओं को छलकाने
मन में उदासियों का छाया है ढेर
खुशियों को ढूँढ़ते हैं टके में सेर
खुश होने के मतलब से अनजाने

कोई पीता है शराब के जाम
कोई ढूँढता अय्याशी के काम
नाचने-गाने की महफ़िल में ढूंढते हैं
जिन्दगी की असलियत के पैमाने
फिर भी इस जहाँ में कोई खुश नहीं दिखता
कोई माने या माने
जो दिल में न हो वह
बाजार में कहाँ मिल सकता है
कितनी भी कोशिश कर लें
नहीं मिल सकता चैन कभी
जब तक असलियत से रहेंगे अनजाने
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सोहब्बत का असर होता है
बदनाम गलियों में जाने के लिए
भला क्या काम होता है
झूठ की चमक में खोये हैं सब
सच का काम तमाम होता है
फिर शिकायत जमाने की क्यों करते हो
हमारी आंखों के सामने ही
यकीन का कत्ल सरेआम होता है
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बंद किये हैं जिन्होंने सोच के दरवाजे-हिंदी शायरी

बंद किये हैं जिन्होंने अपनी सोच के दरवाजे
किसीका दर्द क्यों सुनेंगे, चाहे बजाओ बाजे
अपने दिल में बस अपना ख्याल ही उनको
कर जाते हैं दूसरों से हमेशा झूठे वादे
अपने मतलब के लिए चाहे जहाँ चले जाते
न हो कोई वास्ता तो, पुराने जख्म कर देते ताजे
ऐसे लोगों से क्या उम्मीद और भरोसा करना
जिन्होंने कर रखें बंद, अपने विश्वास के दरवाजे

Friday, 7 March 2008

फिर भी नफ़रत होती नहीं कम -हिंदी शायरी

वादा किया था हमने उनसे



जिन रास्तों पर होगी उनकी बस्ती



कभी नहीं गुजरेंगे उनसे हम



उनके पास नहीं रखेंगे कभी कदम



चलने के लिए और भी राहें है



उसी पर हम चलते जाते



फिर भी राह पर टकरा जाते



हम करते उनको सलाम तो


वह मुहँ फेर चले जाते



दुनिया में प्यार की बात कितनी भी कर लो



फिर भी नफरत कभी होती नहीं कम
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चले जाते हैं मुहँ फेर कर

मिलते हैं जब राह में

क्योंकि कभी उन्होने किये थे वादे

जिन्हें पूरा नहीं किया था

वह सब भूलकर बढ़ें आगें

हमें उनसे अब कोई शिकायत नहीं

पर कौन तोड़ेगा यह वहम उनका कि

उनके वादे पर कभी हमें यकीन भी किया था।

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Thursday, 6 March 2008

कौन करता हैं हमारा इंतजार-हिंदी शायरी

दिल में ख्याल आते और जाते हैं
कुछ याद रहते और कुछ भूल जाते हैं
जिन्दगी का कारवाँ चलता है सच के साथ
अपने को होता है बस अपना ही हाथ
मिलते हैं हमसफ़र कुछ देर के लिए
अपनी मंजिल आते ही साथ छोड़ जाते हैं
किसका इन्तजार करें
कौन करता है हमारा इन्तजार
दूसरों के आसरे अपने पल यूं ही गुजर जाते हैं

Tuesday, 4 March 2008

फिर क्यों मन मचलता-हिंदी शायरी

कभी मन उदास हो कर
कहीं चले जाने को करता
कहीं और जाकर नये दोस्त
ढूँढने के लिए मचलता
पर यह है उसकी चंचलता

जो सच यहाँ है
वही वहाँ भी है
धोखे और वफ़ा तो कहीं भी हो सकते
जगह बदलने से हालात नही बदल सकते
सच जानते हुए भी मन क्यों मचलता

Sunday, 2 March 2008

तब बदल जायेगा परिदृश्य-हिंदी शायरी


रात्रि के शीतल पलों में
चन्द्रमा की हल्की रोशनी में
देह पर धवल वस्त्र
चारों और बिखर रही इत्र की खुशबू
हाथों में गुलाब लिए
प्रेम की अभिव्यक्ति के लिए निकला है वह
कितना सुन्दर लगता है दृश्य
पर जब सूरज चमकेगा
अपनी अग्नि से धरती को प्रज्जवलित करेगा
अपनी जिम्मदारियों का बोझ उठाएगा
तब निकलेगा उसका पसीना
बदल जायेगा परिदृश्य

दीवारों पर लिखे सत्य पढे नहीं है-हिंदी शायरी

रिश्तों में अब कोई दरार नही है
क्योंकि अब लोगों के दिलों में अब
उनके लिए कोई जगह बची नहीं है

भाई और भाई के बीच
अब कोई दीवार नहीं खड़ी नही रह सकती
क्योंकि रिश्ता रह गया है
जैसे हवा में लटकी तख्ती
नफ़रत जैसी कोई बात नहीं है
क्योंकि समय के कमी की वजह से
कभी प्यार शुरू हुआ ही नहीं है

इधर-उधर लोग उन रिश्तों की
शिकायत करते नजर आते
जो कभी शुरू ही नहीं हो पाते
कहने वाले कहते हैं कि
जो चूल्हे के पास वही होता है दिल में
चूल्हे बनवा दिए जिनके अलग
फिर उनका इन्तजार क्यों करते हैं
शायद उन्होने इतिहास की
दीवारों पर लिखे सत्य पढे नहीं हैं
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Saturday, 1 March 2008

वह एक है, पर नाम अनेक-हिंदी शायरी

हमने पूछा दुनिया के मालिक का पता
उन्होने ढोल बजाने वालों का घर बता दिया
जो पहुंचे वहाँ सुना शोर
तो हमने मालिक को भुला दिया
वह है एक पर नाम अनेक
डर था की कहीं हम लें नाम उनका
कहीं और अधिक शोर न मच जाये
अगर कहीं हमने भीड़ से अलग नाम लिया
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अपने घर का बजट बनाने से क्या फायदा-हिंदी शायरी

गृहणी ने गृहस्वामी से कहा

''आज मैंने महिलाओं की

एक किताब में पढा कि

घर का खर्च भी बजट बनाकर करना चाहिए''

गृहस्वामी ने कहा

''बजट बनाने के लिए भी

कागज़ और पेन चाहिए

जो अपने बजट में नहीं आ सकतीं

पड़ोस से उधार लेकर अख़बार और किताब

जो तुम पढ़कर बढाती हो ज्ञान

उसका भी नहीं हो सकता इंतजाम

मेरे पास समय नहीं है काम से फुरसत

तुम अगर बजट बनाओगी

बाजार तो जाना है मुझे

तुम तो नहीं जाओगी

तुम्हारे बजट से बाजार नहीं चलता

उसके बजट से हमारा घर चलता

इसलिए यह सब भूल जाओ

बजट बनाने का शौक नहीं हो सकता पूरा

उसके लिए जगह भी वैसी ही चाहिए

अपने लिए बनाया तो, हमें क्या फायदा

ऐसी जगह बैठें

जहाँ बनाएं हम और जमाने को उस पर चलना चाहिए

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स्वार्थों के होते मेहमान-हिंदी शायरी

चेहरे पर है दिखावटी मुस्कान
नहीं होता नीयत का भान
बदन पर हैं जगमगाते वस्त्र धारण किए
दिल में काली नियत लिए
भरोसे के लिए निकल रहे हैं
शब्द जुबान से निरंतर
विश्वास और धोखे का मालुम नहीं अन्तर
मन की आंखों से पढोगे जब उनको
उनके शब्दों के अर्थों का अर्थ समझ में आयेगा
भरोसे और वादों का वजन कम हो जायेगा
झूठी दिखेगी उनकी शान
वह तुम्हारे नहीं
अपने स्वार्थों के होते मेहमान
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Friday, 29 February 2008

हाथी उत्पात मचा रहे हैं-हिंदी शायरी

जंगल में भोले भाले हाथी
इसलिए उत्पात मचा रहे हैं
क्योंकि उनके घरों को
सफ़ेद हाथी छोटा बना रहे हैं
सदियों से रहते आये मनुष्यों के साथ
अपने भोजन को लुटता तो देख पाते
पर चर जाते सफ़ेद हाथी उसे
वह दृष्टि पथ में नहीं आते
जंगली हाथी उसे ढूँढने के लिए ही
आ रहे हैं जंगलों से बाहर आ रहे हैं
''आज ख़तरा है हमें
कल तुम भी आओगे इसके दायरे में''
आदमी पर हमला कर यह बता रहे हैं
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Thursday, 28 February 2008

अगर हिट होता है तो बेहूदा भी लिख जाएं-हिंदी शायरी

अगर हिट होता है तो बेहूदा भी लिख जाएं
और चारों तरफ से वाह-वाह जुटाएँ
जैसा पढ़ते हैं पाठक वैसा ही लिखें
जिससे प्यार मिलता हो वैसा दिखें
अगर मन में हैं कूड़ा तो
सोने जैसा कहाँ लिख पायेंगे
लिखना जरूरी है तो लिखते जायेंगे
भले ही कुछ लोगों को पसंद न आयें

सभी लगें है अपना सम्मान बढाने में
अपने आसपास भीड़ जुटाने में
हम क्यों पीछे रह जाएं
जो कहलाते है समाज के शिखर
एक नंबर की दौलत तो कम होती है
उनके पास
करते हैं वह भी दो नंबर से आस
अन्दर होता है सब कुछ काला
चमकते सिक्के लगते हैं बाहर दिखाने
फिर हम क्यों चूकें अपने निशाने


मन में आये जैसा लिखों
पर अपने अन्दर अपने को साफ दिखों
पढ़ने के लिए अच्छा साहित्य ही लायें
दुनिया ढूँढती पढ़ने के लिए व्यस्क सामग्री
तुम चाहे लिख दो
पर अपने बालकों को बाल साहित्य और
बडों को सत् साहित्य पढाएँ
अपने लिखे से तुम दुनिया नहीं बदल सकते
अच्छा लिखा तब तक कोई नहीं पढेगा
जब तक तुम बाजार में सस्ते नहीं बिक सकते
बेहूदा लिखने से परहेज नहीं करना
अगर मंहगे में बिक सकते
मन की बात लिखने के लिए
अपनी महफ़िल अलग सजाएं
मस्तराम 'आवारा की तरह अकेले
रहने के लिए तैयार हो जाएं
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Wednesday, 27 February 2008

खाने-खिलाने का चक्कर आदमी को बना देता है कोल्हू का बैल-हिन्दी शायरी

पल भर की खुशी के लिए
पूरी जिन्दगी दाव पर लगा देते हैं
देना है जन्मदिन, शादी और तेरहवीं पर
लोगों को खाने की दावत
जिनका खाया है उनसे न हो अदावत
इस सोच में
जिन्दगी के खूबसूरत पल गँवा देते हैं
खाने-खिलाने के चक्कर
आदमी को कोल्हू का बैल बना देते हैं
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प्यार है तो बहानों की क्या जरूरत
व्यापार है तो शर्माने की क्या जरूरत
संकोच के साथ जीवन नहीं चलता
खेल हो या जंग
डरने वालों से काम नहीं बनता
बदलाव के लिए होती बहादुरी की जरूरत

Monday, 25 February 2008

क्या करेंगे कागज़ पर पते लेकर-हिंदी शायरी

तेज आंधी ने उडाया तो
आंधी ने इंसान की आँखों में
घर बना लिया
वक्त के घुमते पहिये के साथ
जो पाँव से कुचला जाता है
वह उठकर सिर तक भी आ सकता है
उसने यह बता दिया
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घर से लेकर निकले थे
उनके नये घर का पता लेकर
गुम हो गया कागज़ रास्ते पर
भटकते रहे सड़कों पर और लौटे घर
सोचा-'नहीं मिला तो कोई बात नहीं
इस बार नहीं तो अगली बार मिलेंगे
दुबारा निकलेंगे पता लेकर'

सच है
इंसानों के पते होते हैं
पतों पर होते इंसान
अगर वह दिल में नहीं बसते
तो क्या करेंगे कागज़ पर पते लेकर

Sunday, 24 February 2008

उसे नहीं देख पाता कोई दिल-हिन्दी शायरी

जब बड़े लोगों के सजती है महफ़िल
तड़पते हैं छोटे लोगों के दिल
इंसानों में जब होता है अन्तर
तब कोई काम नहीं करता शांति का मंतर
देशों की जंग दिखती है
पर आदमी जो पल-पल लड़ता मन में
उसमें तो नैतिकता पिसती है
आर्थिक संपन्नता और विपन्नता के बीच
पलती है नफरत
उसे नहीं देख पाता कोई दिल
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आशिक ने कहा
''मैं तुम्हें चाहता हू
तुमसे लगा है मेरा दिल''
माशुका बोली
''क्या इतना सस्ता समझ रखा है
तभी मान सकती हूँ तुम्हें
पहले चुकाओं
साल भर तक
मेरे मोबाइल, मेकअप और मोटर का बिल''
आशिक गया हिल
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भरोसा और विज्ञापन-हिन्दी शायरी

अब भरोसा ढूँढने की चीज नहीं रही
टीवी चैनल और पत्र-पत्रिकाएँ
पढ़ते जाओ
ढेर सारी चीजें खरीदो
और भरोसे के साथ हो जाओ
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हमने जो उनसे कहा
''हम पर करो भरोसा
वक्त पर काम आयेंगे''
उन्होंने कहा
''आप वक्त पर किसी के काम आए
ऐसा क्या प्रमाण लाएंगे
हमने टीवी चैनल पर या अखबार में
कहीं आपका नाम नहीं देखा
आदमी के ख़ुद ने कहने से कुछ नहीं होता
उसका विज्ञापन होना भी जरूरी है
अगर ऐसा नहीं है तो
हम भी भरोसा कहाँ कर पायेंगे
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Saturday, 23 February 2008

तब तक प्यार का इन्तजार कर-हिन्दी शायरी

आसमान से कोई हूर आकर
तुझे प्यार करेगी इसका इंतजार न कर
इस जमीन पर नजर रख कर चल
यहाँ भी हूरें बहुत है
पहले अपने दिल से प्यार का इजहार कर
खुले आकाश में कोई ऐसी जगह का
ठिकाना का पता किसी को नहीं है
जहाँ कोई आदमी की हस्ती हो
जहाँ हूरों की बस्ती हो
प्यार पाने के लिए कहीं मिन्नतें मांगने की
कोई जरूरत नहीं
दिल में पैदा होगा तभी मिलेगा और कहीं
और कोई तो तभी करे
पहले तू अपने से इकरार कर
ढूंढ रहे हैं लोग प्यार की दौलत कौडियों के मोल
बोलते हैं झूठ के बोल
सच्चे प्यार की कमी है ज़माने में
पढ़ते हैं जो बहुत ज्ञान की किताबें
वही लगे हैं लोगों को प्यार के नाम पर भरमाने में
तू भीड़ से परे हटकर
अपने दिल में जहाँ कर देख
किस कोने में प्यार रहता है
कहाँ हमदर्दी का दरिया बहता है
फिर चल उस राह पर
जिसका पता तू जानता हो
जब तक देख न ले अपने आप को
तब तक प्यार का इन्तजार कर

आदमी में विश्वास कहाँ है-हिन्दी शायरी

विश्वास टूटता कहाँ है
जो टूटता वह विश्वास कहाँ है
देने वाले ने काम के लिए दो हाथ
चलने के लिए दो पाँव
देखने के लिए आँखें
सुनने के लिए कान
सांस लेने के लिए नाक
विचार के लिए दी अक्ल
पर आदमी में विश्वास कहाँ है

आदमी अपने हाथ पेट पर लगाए बैठा रहता
पाँव उसी तरफ झुकाए
सुनता केवल उसके स्वर
सूंघता केवल अन्दर से नाक की तरफ
आती हुए भोजन की खुशबू
सोचता रहता पर रोटी भरने के लिए
फुरसत पाए तो सुस्ताते हुए जपता नाम
ढोल और शंख बजाकर चीखता
पर आदमी में विश्वास कहाँ है
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Friday, 22 February 2008

कलम की कोई मर्जी नहीं होती-हिन्दी शायरी

बंद कर दिए गुरुकुल
खोल लिए स्कूल
आसनों की जगह रख दिए स्टूल
नये ज़माने के चक्कर में
फैशन की टक्कर में
अपनी असलियत गए भूल
बेसहारा को सहारा नहीं दें
भूखे को खाना न दें
जिनसे किसी का पेट नहीं भरता
उन विषयों को देते तूल
कोई विषय न मिले तो
करते हैं जमाने के बिगड़ने और भटकने की
शिकायत करते
खुद का दोष जाते भूल
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पत्थर और कागज़ पर
लिखी कोई इबारत सच नहीं होती
लिखने वाले कोई फ़रिश्ते नहीं होते
और इंसानों से तो हमेशा भूल होती
डालर तो किसी इंसान को हीरा बना दो
रुपया दो तो किसी को भी सोना बना दो
कौडी देकर किसी को भी बोना बना दो
लिखने वाला जो चाहे लिख दे
कलम की कोई मर्जी नहीं होती
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Thursday, 21 February 2008

अपनों से अपनों पर करो राज-हिन्दी शायरी

एक कंपनी से हुए आजाद
पर फिर आ रहा है कंपनी राज
पहले तो विदेशी थी
चालाकी और छल कपट से आई
और पूरे देश पर छाई
लड़ने के लिए कई बहाने थे
क्योंकि थी पराई
पर कंपनी तो कंपनी ठहरी
अब अपनों के कई भेष धरकर आई
कहाँ और किससे शिकायत करोगे
कैसे करोगे लड़ाई
पहले था उसका नारा
''फ़ुट डालो और करो राज'
पर अब कंपनियों का नारा है
''अपने बनकर, अपनत्व से अपनों पर करो राज'
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कन्याओं की भ्रूण हत्याएं
इसी तरह होती रहीं
और बाजार के बिकने के
नये रिवाज के आने से
तो हो जायेगी प्रलय

बेटे के माँ-बाप अब कैसे
करेंगे अपने लाडले का बखान
कोई भी पूछ सकता है कि
''बताओ बाजार में इसकी
बोली कितनी लगी है
रिजर्व प्राइज कितनी बनी है'
क्या जवाब होगा उनका उस समय
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Tuesday, 19 February 2008

भरोसा-शायरी

किस पर कितना भरोसा करें
यह अक्सर सोचते
पर हम कितना भरोसे लायक हैं
इस सोच से मुहँ मोड़ते
भरोसा कोई पेड़ पर लटकी चीज नहीं
जो हर किसी को मिल जाये
भला वह फल कहाँ से आये
जिसका पेड़ हम खुद नहीं बोते
केवल पाने के लिए रोते
दूसरों की शिकायत खूब करते
पर हमने कभी सोचा है
कितनों का भरोसा हम तोड़ते
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Monday, 18 February 2008

अक्ल की कोई नहीं है गिनती- शायरी

जगह-जगह खुली हैं

लोगों को भरमाने के लिए दूकान

कोई चीज हाथ में नहीं मिलती

बस मोबाइल का बटन दबाते जाओ

अपनी पसंद के चेहरे के नाम पर मुहर लगाओ

कराओ खर्च करने वालों में गिनती

न पास की और न बात फेल की

चर्चा है हवा के खेल की

अक्ल से कोई वास्ता नहीं

उसकी तो कोई नहीं है गिनती

Sunday, 17 February 2008

मन है आवारा-शायरी

यूं तो हर आदमी है
जिन्दगी में अकेला आवारा
कितने बडे महल बना ले
अपनी आँगन में चाहे
जितने सुन्दर बाग़ सजा ले
मन तो उसका भटकता है
जैसे कोई हो बंजारा
कितनी भीड़ जुटा लेता है
लोग और सामानों की
भयभीत रहता है कि कहीं
हो न जाऊं अकेला
भागते-भागते जब थक जाता है
तब अपने को ही लगता है बिचारा
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फिर नही होंगे हादसे-हास्य कविता

यूं तो होते हैं हर रोज हादसे
वह इसलिए नजर आते
क्योंकि हम उनसे बचकर घर आ जाते
पर जब कोई हो जायेगा हमारे साथ
उठा ले जायेगा अपने हाथ
फिर नहीं दिखाई देंगे अपनी जिन्दगी में हादसे
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