Friday, 22 February 2008

कलम की कोई मर्जी नहीं होती-हिन्दी शायरी

बंद कर दिए गुरुकुल
खोल लिए स्कूल
आसनों की जगह रख दिए स्टूल
नये ज़माने के चक्कर में
फैशन की टक्कर में
अपनी असलियत गए भूल
बेसहारा को सहारा नहीं दें
भूखे को खाना न दें
जिनसे किसी का पेट नहीं भरता
उन विषयों को देते तूल
कोई विषय न मिले तो
करते हैं जमाने के बिगड़ने और भटकने की
शिकायत करते
खुद का दोष जाते भूल
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पत्थर और कागज़ पर
लिखी कोई इबारत सच नहीं होती
लिखने वाले कोई फ़रिश्ते नहीं होते
और इंसानों से तो हमेशा भूल होती
डालर तो किसी इंसान को हीरा बना दो
रुपया दो तो किसी को भी सोना बना दो
कौडी देकर किसी को भी बोना बना दो
लिखने वाला जो चाहे लिख दे
कलम की कोई मर्जी नहीं होती
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