Friday, 21 March 2008

असल में दानवता सब जगह खेले-हिंदी शायरी

प्रहलाद ने तो की थी भक्ति
वैभव को दी थी चुनौती
तपस्या से मिली थी उसे शक्ति
पर आज तो वैभव की रौशनी
देखकर सब अंधे हो जाते हैं
उसकी शक्ति के आगे सब लाचार नजर आते हैं
चकाचौंध में युवक-युवतियों की आसक्ति
मन में व्यसनों की चादर ओढे हैं
होलिका भी ऐसी चादर क्या लाती
जो धीरे-धीरे आज के प्रह्लादों को जलाती
भक्ति की जगह पैदा करती आसक्ति
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देवताओं के चमत्कार के
नाम पर सब जगह लगते हैं मेले
पर वहाँ भी पहुंचते दानवों के चेले
देवता की मूर्ति हो या प्रसाद
बिकतीं हैं मंहगे
वाहन खडा करने पर लेते दूना किराया
अन्दर हैं देवता और बाहर है दानव उससे सवाया
देवत्व तो नाम हो जाता है
असल में तो दानवता सब जगह खेले
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