Sunday, 24 February 2008

भरोसा और विज्ञापन-हिन्दी शायरी

अब भरोसा ढूँढने की चीज नहीं रही
टीवी चैनल और पत्र-पत्रिकाएँ
पढ़ते जाओ
ढेर सारी चीजें खरीदो
और भरोसे के साथ हो जाओ
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हमने जो उनसे कहा
''हम पर करो भरोसा
वक्त पर काम आयेंगे''
उन्होंने कहा
''आप वक्त पर किसी के काम आए
ऐसा क्या प्रमाण लाएंगे
हमने टीवी चैनल पर या अखबार में
कहीं आपका नाम नहीं देखा
आदमी के ख़ुद ने कहने से कुछ नहीं होता
उसका विज्ञापन होना भी जरूरी है
अगर ऐसा नहीं है तो
हम भी भरोसा कहाँ कर पायेंगे
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2 comments:

नीरज गोस्वामी said...

बहुत बढिया कटाक्ष आनंद आ गया.
नीरज

रवीन्द्र प्रभात said...

बहुत सुंदर व्यंग्य,बधाईयाँ !