यूं तो हर आदमी है
जिन्दगी में अकेला आवारा
कितने बडे महल बना ले
अपनी आँगन में चाहे
जितने सुन्दर बाग़ सजा ले
मन तो उसका भटकता है
जैसे कोई हो बंजारा
कितनी भीड़ जुटा लेता है
लोग और सामानों की
भयभीत रहता है कि कहीं
हो न जाऊं अकेला
भागते-भागते जब थक जाता है
तब अपने को ही लगता है बिचारा
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खुशी हो या गम-हिंदी शायरी
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*अपनी धुन में चला जा रहा थाअपने ही सुर में गा रहा थाउसने कहा‘तुम बहुत अच्छा
गाते होशायद जिंदगी में बहुत दर्दसहते जाते होपर यह पुराने फिल्म...
17 years ago

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