Sunday, 30 March 2008
तरक्की नाम की चिडिया संवेदनशील हो गयी है-हिंदी शायरी
जिसके उड़ने की चर्चा आम हो गयी है
जमीन पर कभी आती क्यों नहीं
या ऊंची इमारतों में रहने की आदी हो गयी हैं
डरती होगी नीचे उतरने में
क्योंकि दिखाई देंगे
भूखे नंगे लोग रास्ते में
रोटी और प्यास से तड़पते हुए
बीमार अस्पताल के बाहर टपकते हुए
बेकार युवकों का झुंड
नौकरी के तलाश में भटकते हुए
आम आदमी के पाँव सड़क के
गड्ढों में अटकते हुए
शायद यह सब नहीं चाहती देखना
तरक्की नाम की चिडिया संवेदनशील हो गयी है
Saturday, 22 March 2008
आदमी के मिजाज नहीं बदलते-हिंदी शायरी
पेडों पर पते चले आते
और पतझड़ में बिछड़ जाते हैं
कभी पेडों को पते आने पर
खुश होते नहीं देखा
उनके बिछड़ने पर रोते नहीं देखा
पर इंसानों की आदत हैं
हर मौसम में रोना
इसलिए उसकी जिन्दगी में
हमेशा पतझड़ ही देख पाते हैं
जिनके यहाँ आता है बसंत
वह भी उसे छिपाते हैं
भय के साथ सोता
आशंकाओं के साथ उठता इंसान
इसलिए कभी खुश नहीं देख पाते हैं
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मौसम की तरह
जिन्दगी के दौर भी बदलते हैं
पर इंसान के ख्यालों में
कभी नहीं आता बदलाव
इसलिए उसकी जिन्दगी के
मिजाज कभी नहीं बदलते हैं
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Friday, 21 March 2008
असल में दानवता सब जगह खेले-हिंदी शायरी
वैभव को दी थी चुनौती
तपस्या से मिली थी उसे शक्ति
पर आज तो वैभव की रौशनी
देखकर सब अंधे हो जाते हैं
उसकी शक्ति के आगे सब लाचार नजर आते हैं
चकाचौंध में युवक-युवतियों की आसक्ति
मन में व्यसनों की चादर ओढे हैं
होलिका भी ऐसी चादर क्या लाती
जो धीरे-धीरे आज के प्रह्लादों को जलाती
भक्ति की जगह पैदा करती आसक्ति
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देवताओं के चमत्कार के
नाम पर सब जगह लगते हैं मेले
पर वहाँ भी पहुंचते दानवों के चेले
देवता की मूर्ति हो या प्रसाद
बिकतीं हैं मंहगे
वाहन खडा करने पर लेते दूना किराया
अन्दर हैं देवता और बाहर है दानव उससे सवाया
देवत्व तो नाम हो जाता है
असल में तो दानवता सब जगह खेले
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Saturday, 15 March 2008
बिना यकीन के दुनिया चल नहीं सकती-हिंदी शायरी
उन पर यकीन कर लिया
उनकी नीयत से मुहँ फेर लिया
जो फेरा उन्होंने मुहँ
अपने किये हुए वादे भूल गए
हम फिर भी करते रहे उम्मीद
पर कभी वादे भी पूरे किये जाते हैं
इरादे कितने भी हों
बिना मतलब के काम भला
इस जमाने में कभी किये जाते हैं
इस जमाने में विश्वास के साथ
कई जगह धोखा भी होगा
हमने यह सच देख लिया
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यकीन कर कई बार
जिन्दगी में हारे हैं
पर फिर भी नहीं टूटता
यकीन करने का सिलसिला
मजबूरी के मारे हैं
बिना यकीन के यह दुनिया
चल ही नहीं सकती
क्योंकि कई लोगों का चलता है
दूसरों को धोखा देने से काम
यही सोचकर हम हारे हैं
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Friday, 14 March 2008
पहले अपना इलाज करवा लो-हिंदी शायरी
''अपने खून की स्याही से
यह प्रेम पत्र लिख रहा हूँ
इसे स्याही न समझना
अपना इश्क अपने दिल के टुकड़े पर
लिख कर इजहार कर रहा हूँ
इसे कागज़ मत समझना
तुम मुझे प्रेम कर आजमा लो''
लौटती डाक से जवाब आया
''अपना खून चेक करवा लो
ख़त में सब लिखा हुआ
नीली स्याही जैसा लगता है
हस्ताक्षर हैं काली स्याही जैसे
ताज्जुब है कि तुम्हारा दिल भी
कागज की तरह लगता है
दूसरा ख़त बाद में लिखना
पहले अपना इलाज करवा लो
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Tuesday, 11 March 2008
मामला दहेज़ का है-हिंदी शायरी
कहा जाता था कि
माता-पिता भगवान् होते हैं
अब तो ऐसा लगता है सबके लिए
बच्चे एक तरह से सजावटी पकवान होते हैं
बेटी को तो गिरा देते हैं गर्भ में ही
जवान बेटे की शादी में भी
चाहते हैं ढेर सारा दहेज़
कर देते हैं उसे बूढा
उसकी ख्वाहिशों का करते हैं कत्ल
तीस की उम्र पार कर भी उनके बेटे
उनकी नजर में गबरू जवान होते हैं
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दहेज़ की लालच में
नहीं कराते माता-पिता
अपने लड़के की नहीं कराते शादी
उम्र निकलती जाती हैं
माँ-बाप की नजर रहती है माल पर
बेटा इधर-उधर नजरें मारता है
कहीं कहीं करता छेड़छाड़
कहीं करता मारधाड़
कहीं जख्म करता कहीं पाता
करता समाज और अपनी बर्बादी
मामला केवल दहेज़ का ही है
मिले तो, ठीक नहीं तो
निष्ठुर माता-पिता नहीं करते लड़के की शादी
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Monday, 10 March 2008
इंसान क्यों शेर कहलाना चाहता है-दो हिंदी क्षणिकाओं
किसी पराये का भला करता नहीं
किसी बेबस को सहारा देता नहीं
किसी के मन के दर्द का हाल लेता नहीं
पर फिर भी फरिश्ता कहलाना चाहता
पंजों में नाखून नहीं है जो
किसी पर अत्याचार होने से रोक सके
पंजों में वह ताकत नहीं है कि
किसी के कत्ल करने से पहले टोक सके
करता है तब
जहर भरे शब्दों की बौछार
लोग डरें और सहम जाएं
अपने इलाके की सीमाओं को जानता नहीं
पाल लेता हैं इंसानों के भेष में भेडिये
कर देता हैं खडा अपनी गुफा के बाहर पहरे पर
और इलाके का शेर कहलाना चाहता है
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अपने इलाके का शेर कहलाते हुए
कुछ लोगों का सीना फूल जाता है
उन्हें पता नहीं कितना भी बड़ा शेर हो
कभी न कभी उसका शिकार हो जाता है
कोई दूसरा शेर न करें तो
ऊपर वाले का तीर चल जाता है
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Sunday, 9 March 2008
फिर भी तमाशा चल रहा है-हिंदी शायरी
तेज रौशनी से लोगों की आँखें
चकाचौंध में बंद हो जातीं
पूरे समाज का कदम बहक रहा है
सड़कों पर हो गयी है खामोशी
तमाशों का काम अब बंद कमरों में हो रहा है
मदारी अब रास्ते में आवाज देकर
नहीं बुलाता लोगों की भीड़
बन्दर-बंदरिया का नाच देखने के लिए
इंसानी बुत तैयार हैं
अपने करतब दिखाने के लिए
अब मशीने आवाज करतीं हैं
लोगों को बुलाने के लिए
शोर मचता है कई दिन पहले
कहते हैं शो पर
तमाशा चल रहा है
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अपने दुख भूल जाना चाहिए
जब इतने तमाशे दिखाए जा रहे हैं
पर आम आदमी के दुख दर्दों का
सिलसिला फिर भी नहीं थमता
किसी भूखे का पेट बिना रोटी के बिना
नहीं भर सकता
रोगी का इलाज बिना दवा के नहीं हो सकता
ताज्जुब होता है यह देखकर
फिर भी आजकल के मदारी
तमाशों से घर भरते जा रहे हैं
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Saturday, 8 March 2008
जब तक रहेंगे असलियत से अनजाने-हिंदी शायरी
खाली हैं प्यार से दिल,
आंखों से लगते आंसुओं को छलकाने
मन में उदासियों का छाया है ढेर
खुशियों को ढूँढ़ते हैं टके में सेर
खुश होने के मतलब से अनजाने
कोई पीता है शराब के जाम
कोई ढूँढता अय्याशी के काम
नाचने-गाने की महफ़िल में ढूंढते हैं
जिन्दगी की असलियत के पैमाने
फिर भी इस जहाँ में कोई खुश नहीं दिखता
कोई माने या माने
जो दिल में न हो वह
बाजार में कहाँ मिल सकता है
कितनी भी कोशिश कर लें
नहीं मिल सकता चैन कभी
जब तक असलियत से रहेंगे अनजाने
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सोहब्बत का असर होता है
बदनाम गलियों में जाने के लिए
भला क्या काम होता है
झूठ की चमक में खोये हैं सब
सच का काम तमाम होता है
फिर शिकायत जमाने की क्यों करते हो
हमारी आंखों के सामने ही
यकीन का कत्ल सरेआम होता है
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बंद किये हैं जिन्होंने सोच के दरवाजे-हिंदी शायरी
किसीका दर्द क्यों सुनेंगे, चाहे बजाओ बाजे
अपने दिल में बस अपना ख्याल ही उनको
कर जाते हैं दूसरों से हमेशा झूठे वादे
अपने मतलब के लिए चाहे जहाँ चले जाते
न हो कोई वास्ता तो, पुराने जख्म कर देते ताजे
ऐसे लोगों से क्या उम्मीद और भरोसा करना
जिन्होंने कर रखें बंद, अपने विश्वास के दरवाजे
Friday, 7 March 2008
फिर भी नफ़रत होती नहीं कम -हिंदी शायरी
वादा किया था हमने उनसे
जिन रास्तों पर होगी उनकी बस्ती
कभी नहीं गुजरेंगे उनसे हम
उनके पास नहीं रखेंगे कभी कदम
चलने के लिए और भी राहें है
उसी पर हम चलते जाते
फिर भी राह पर टकरा जाते
हम करते उनको सलाम तो
वह मुहँ फेर चले जाते
दुनिया में प्यार की बात कितनी भी कर लो
फिर भी नफरत कभी होती नहीं कम
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चले जाते हैं मुहँ फेर कर
मिलते हैं जब राह में
क्योंकि कभी उन्होने किये थे वादे
जिन्हें पूरा नहीं किया था
वह सब भूलकर बढ़ें आगें
हमें उनसे अब कोई शिकायत नहीं
पर कौन तोड़ेगा यह वहम उनका कि
उनके वादे पर कभी हमें यकीन भी किया था।
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Thursday, 6 March 2008
कौन करता हैं हमारा इंतजार-हिंदी शायरी
कुछ याद रहते और कुछ भूल जाते हैं
जिन्दगी का कारवाँ चलता है सच के साथ
अपने को होता है बस अपना ही हाथ
मिलते हैं हमसफ़र कुछ देर के लिए
अपनी मंजिल आते ही साथ छोड़ जाते हैं
किसका इन्तजार करें
कौन करता है हमारा इन्तजार
दूसरों के आसरे अपने पल यूं ही गुजर जाते हैं
Tuesday, 4 March 2008
फिर क्यों मन मचलता-हिंदी शायरी
कहीं चले जाने को करता
कहीं और जाकर नये दोस्त
ढूँढने के लिए मचलता
पर यह है उसकी चंचलता
जो सच यहाँ है
वही वहाँ भी है
धोखे और वफ़ा तो कहीं भी हो सकते
जगह बदलने से हालात नही बदल सकते
सच जानते हुए भी मन क्यों मचलता
Sunday, 2 March 2008
तब बदल जायेगा परिदृश्य-हिंदी शायरी
रात्रि के शीतल पलों में
चन्द्रमा की हल्की रोशनी में
देह पर धवल वस्त्र
चारों और बिखर रही इत्र की खुशबू
हाथों में गुलाब लिए
प्रेम की अभिव्यक्ति के लिए निकला है वह
कितना सुन्दर लगता है दृश्य
पर जब सूरज चमकेगा
अपनी अग्नि से धरती को प्रज्जवलित करेगा
अपनी जिम्मदारियों का बोझ उठाएगा
तब निकलेगा उसका पसीना
बदल जायेगा परिदृश्य
दीवारों पर लिखे सत्य पढे नहीं है-हिंदी शायरी
क्योंकि अब लोगों के दिलों में अब
उनके लिए कोई जगह बची नहीं है
भाई और भाई के बीच
अब कोई दीवार नहीं खड़ी नही रह सकती
क्योंकि रिश्ता रह गया है
जैसे हवा में लटकी तख्ती
नफ़रत जैसी कोई बात नहीं है
क्योंकि समय के कमी की वजह से
कभी प्यार शुरू हुआ ही नहीं है
इधर-उधर लोग उन रिश्तों की
शिकायत करते नजर आते
जो कभी शुरू ही नहीं हो पाते
कहने वाले कहते हैं कि
जो चूल्हे के पास वही होता है दिल में
चूल्हे बनवा दिए जिनके अलग
फिर उनका इन्तजार क्यों करते हैं
शायद उन्होने इतिहास की
दीवारों पर लिखे सत्य पढे नहीं हैं
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Saturday, 1 March 2008
वह एक है, पर नाम अनेक-हिंदी शायरी
उन्होने ढोल बजाने वालों का घर बता दिया
जो पहुंचे वहाँ सुना शोर
तो हमने मालिक को भुला दिया
वह है एक पर नाम अनेक
डर था की कहीं हम लें नाम उनका
कहीं और अधिक शोर न मच जाये
अगर कहीं हमने भीड़ से अलग नाम लिया
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अपने घर का बजट बनाने से क्या फायदा-हिंदी शायरी
गृहणी ने गृहस्वामी से कहा
''आज मैंने महिलाओं की
एक किताब में पढा कि
घर का खर्च भी बजट बनाकर करना चाहिए''
गृहस्वामी ने कहा
''बजट बनाने के लिए भी
कागज़ और पेन चाहिए
जो अपने बजट में नहीं आ सकतीं
पड़ोस से उधार लेकर अख़बार और किताब
जो तुम पढ़कर बढाती हो ज्ञान
उसका भी नहीं हो सकता इंतजाम
मेरे पास समय नहीं है काम से फुरसत
तुम अगर बजट बनाओगी
बाजार तो जाना है मुझे
तुम तो नहीं जाओगी
तुम्हारे बजट से बाजार नहीं चलता
उसके बजट से हमारा घर चलता
इसलिए यह सब भूल जाओ
बजट बनाने का शौक नहीं हो सकता पूरा
उसके लिए जगह भी वैसी ही चाहिए
अपने लिए बनाया तो, हमें क्या फायदा
ऐसी जगह बैठें
जहाँ बनाएं हम और जमाने को उस पर चलना चाहिए
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स्वार्थों के होते मेहमान-हिंदी शायरी
नहीं होता नीयत का भान
बदन पर हैं जगमगाते वस्त्र धारण किए
दिल में काली नियत लिए
भरोसे के लिए निकल रहे हैं
शब्द जुबान से निरंतर
विश्वास और धोखे का मालुम नहीं अन्तर
मन की आंखों से पढोगे जब उनको
उनके शब्दों के अर्थों का अर्थ समझ में आयेगा
भरोसे और वादों का वजन कम हो जायेगा
झूठी दिखेगी उनकी शान
वह तुम्हारे नहीं
अपने स्वार्थों के होते मेहमान
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