Friday, 29 February 2008

हाथी उत्पात मचा रहे हैं-हिंदी शायरी

जंगल में भोले भाले हाथी
इसलिए उत्पात मचा रहे हैं
क्योंकि उनके घरों को
सफ़ेद हाथी छोटा बना रहे हैं
सदियों से रहते आये मनुष्यों के साथ
अपने भोजन को लुटता तो देख पाते
पर चर जाते सफ़ेद हाथी उसे
वह दृष्टि पथ में नहीं आते
जंगली हाथी उसे ढूँढने के लिए ही
आ रहे हैं जंगलों से बाहर आ रहे हैं
''आज ख़तरा है हमें
कल तुम भी आओगे इसके दायरे में''
आदमी पर हमला कर यह बता रहे हैं
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Thursday, 28 February 2008

अगर हिट होता है तो बेहूदा भी लिख जाएं-हिंदी शायरी

अगर हिट होता है तो बेहूदा भी लिख जाएं
और चारों तरफ से वाह-वाह जुटाएँ
जैसा पढ़ते हैं पाठक वैसा ही लिखें
जिससे प्यार मिलता हो वैसा दिखें
अगर मन में हैं कूड़ा तो
सोने जैसा कहाँ लिख पायेंगे
लिखना जरूरी है तो लिखते जायेंगे
भले ही कुछ लोगों को पसंद न आयें

सभी लगें है अपना सम्मान बढाने में
अपने आसपास भीड़ जुटाने में
हम क्यों पीछे रह जाएं
जो कहलाते है समाज के शिखर
एक नंबर की दौलत तो कम होती है
उनके पास
करते हैं वह भी दो नंबर से आस
अन्दर होता है सब कुछ काला
चमकते सिक्के लगते हैं बाहर दिखाने
फिर हम क्यों चूकें अपने निशाने


मन में आये जैसा लिखों
पर अपने अन्दर अपने को साफ दिखों
पढ़ने के लिए अच्छा साहित्य ही लायें
दुनिया ढूँढती पढ़ने के लिए व्यस्क सामग्री
तुम चाहे लिख दो
पर अपने बालकों को बाल साहित्य और
बडों को सत् साहित्य पढाएँ
अपने लिखे से तुम दुनिया नहीं बदल सकते
अच्छा लिखा तब तक कोई नहीं पढेगा
जब तक तुम बाजार में सस्ते नहीं बिक सकते
बेहूदा लिखने से परहेज नहीं करना
अगर मंहगे में बिक सकते
मन की बात लिखने के लिए
अपनी महफ़िल अलग सजाएं
मस्तराम 'आवारा की तरह अकेले
रहने के लिए तैयार हो जाएं
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Wednesday, 27 February 2008

खाने-खिलाने का चक्कर आदमी को बना देता है कोल्हू का बैल-हिन्दी शायरी

पल भर की खुशी के लिए
पूरी जिन्दगी दाव पर लगा देते हैं
देना है जन्मदिन, शादी और तेरहवीं पर
लोगों को खाने की दावत
जिनका खाया है उनसे न हो अदावत
इस सोच में
जिन्दगी के खूबसूरत पल गँवा देते हैं
खाने-खिलाने के चक्कर
आदमी को कोल्हू का बैल बना देते हैं
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प्यार है तो बहानों की क्या जरूरत
व्यापार है तो शर्माने की क्या जरूरत
संकोच के साथ जीवन नहीं चलता
खेल हो या जंग
डरने वालों से काम नहीं बनता
बदलाव के लिए होती बहादुरी की जरूरत

Monday, 25 February 2008

क्या करेंगे कागज़ पर पते लेकर-हिंदी शायरी

तेज आंधी ने उडाया तो
आंधी ने इंसान की आँखों में
घर बना लिया
वक्त के घुमते पहिये के साथ
जो पाँव से कुचला जाता है
वह उठकर सिर तक भी आ सकता है
उसने यह बता दिया
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घर से लेकर निकले थे
उनके नये घर का पता लेकर
गुम हो गया कागज़ रास्ते पर
भटकते रहे सड़कों पर और लौटे घर
सोचा-'नहीं मिला तो कोई बात नहीं
इस बार नहीं तो अगली बार मिलेंगे
दुबारा निकलेंगे पता लेकर'

सच है
इंसानों के पते होते हैं
पतों पर होते इंसान
अगर वह दिल में नहीं बसते
तो क्या करेंगे कागज़ पर पते लेकर

Sunday, 24 February 2008

उसे नहीं देख पाता कोई दिल-हिन्दी शायरी

जब बड़े लोगों के सजती है महफ़िल
तड़पते हैं छोटे लोगों के दिल
इंसानों में जब होता है अन्तर
तब कोई काम नहीं करता शांति का मंतर
देशों की जंग दिखती है
पर आदमी जो पल-पल लड़ता मन में
उसमें तो नैतिकता पिसती है
आर्थिक संपन्नता और विपन्नता के बीच
पलती है नफरत
उसे नहीं देख पाता कोई दिल
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आशिक ने कहा
''मैं तुम्हें चाहता हू
तुमसे लगा है मेरा दिल''
माशुका बोली
''क्या इतना सस्ता समझ रखा है
तभी मान सकती हूँ तुम्हें
पहले चुकाओं
साल भर तक
मेरे मोबाइल, मेकअप और मोटर का बिल''
आशिक गया हिल
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भरोसा और विज्ञापन-हिन्दी शायरी

अब भरोसा ढूँढने की चीज नहीं रही
टीवी चैनल और पत्र-पत्रिकाएँ
पढ़ते जाओ
ढेर सारी चीजें खरीदो
और भरोसे के साथ हो जाओ
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हमने जो उनसे कहा
''हम पर करो भरोसा
वक्त पर काम आयेंगे''
उन्होंने कहा
''आप वक्त पर किसी के काम आए
ऐसा क्या प्रमाण लाएंगे
हमने टीवी चैनल पर या अखबार में
कहीं आपका नाम नहीं देखा
आदमी के ख़ुद ने कहने से कुछ नहीं होता
उसका विज्ञापन होना भी जरूरी है
अगर ऐसा नहीं है तो
हम भी भरोसा कहाँ कर पायेंगे
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Saturday, 23 February 2008

तब तक प्यार का इन्तजार कर-हिन्दी शायरी

आसमान से कोई हूर आकर
तुझे प्यार करेगी इसका इंतजार न कर
इस जमीन पर नजर रख कर चल
यहाँ भी हूरें बहुत है
पहले अपने दिल से प्यार का इजहार कर
खुले आकाश में कोई ऐसी जगह का
ठिकाना का पता किसी को नहीं है
जहाँ कोई आदमी की हस्ती हो
जहाँ हूरों की बस्ती हो
प्यार पाने के लिए कहीं मिन्नतें मांगने की
कोई जरूरत नहीं
दिल में पैदा होगा तभी मिलेगा और कहीं
और कोई तो तभी करे
पहले तू अपने से इकरार कर
ढूंढ रहे हैं लोग प्यार की दौलत कौडियों के मोल
बोलते हैं झूठ के बोल
सच्चे प्यार की कमी है ज़माने में
पढ़ते हैं जो बहुत ज्ञान की किताबें
वही लगे हैं लोगों को प्यार के नाम पर भरमाने में
तू भीड़ से परे हटकर
अपने दिल में जहाँ कर देख
किस कोने में प्यार रहता है
कहाँ हमदर्दी का दरिया बहता है
फिर चल उस राह पर
जिसका पता तू जानता हो
जब तक देख न ले अपने आप को
तब तक प्यार का इन्तजार कर

आदमी में विश्वास कहाँ है-हिन्दी शायरी

विश्वास टूटता कहाँ है
जो टूटता वह विश्वास कहाँ है
देने वाले ने काम के लिए दो हाथ
चलने के लिए दो पाँव
देखने के लिए आँखें
सुनने के लिए कान
सांस लेने के लिए नाक
विचार के लिए दी अक्ल
पर आदमी में विश्वास कहाँ है

आदमी अपने हाथ पेट पर लगाए बैठा रहता
पाँव उसी तरफ झुकाए
सुनता केवल उसके स्वर
सूंघता केवल अन्दर से नाक की तरफ
आती हुए भोजन की खुशबू
सोचता रहता पर रोटी भरने के लिए
फुरसत पाए तो सुस्ताते हुए जपता नाम
ढोल और शंख बजाकर चीखता
पर आदमी में विश्वास कहाँ है
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Friday, 22 February 2008

कलम की कोई मर्जी नहीं होती-हिन्दी शायरी

बंद कर दिए गुरुकुल
खोल लिए स्कूल
आसनों की जगह रख दिए स्टूल
नये ज़माने के चक्कर में
फैशन की टक्कर में
अपनी असलियत गए भूल
बेसहारा को सहारा नहीं दें
भूखे को खाना न दें
जिनसे किसी का पेट नहीं भरता
उन विषयों को देते तूल
कोई विषय न मिले तो
करते हैं जमाने के बिगड़ने और भटकने की
शिकायत करते
खुद का दोष जाते भूल
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पत्थर और कागज़ पर
लिखी कोई इबारत सच नहीं होती
लिखने वाले कोई फ़रिश्ते नहीं होते
और इंसानों से तो हमेशा भूल होती
डालर तो किसी इंसान को हीरा बना दो
रुपया दो तो किसी को भी सोना बना दो
कौडी देकर किसी को भी बोना बना दो
लिखने वाला जो चाहे लिख दे
कलम की कोई मर्जी नहीं होती
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Thursday, 21 February 2008

अपनों से अपनों पर करो राज-हिन्दी शायरी

एक कंपनी से हुए आजाद
पर फिर आ रहा है कंपनी राज
पहले तो विदेशी थी
चालाकी और छल कपट से आई
और पूरे देश पर छाई
लड़ने के लिए कई बहाने थे
क्योंकि थी पराई
पर कंपनी तो कंपनी ठहरी
अब अपनों के कई भेष धरकर आई
कहाँ और किससे शिकायत करोगे
कैसे करोगे लड़ाई
पहले था उसका नारा
''फ़ुट डालो और करो राज'
पर अब कंपनियों का नारा है
''अपने बनकर, अपनत्व से अपनों पर करो राज'
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कन्याओं की भ्रूण हत्याएं
इसी तरह होती रहीं
और बाजार के बिकने के
नये रिवाज के आने से
तो हो जायेगी प्रलय

बेटे के माँ-बाप अब कैसे
करेंगे अपने लाडले का बखान
कोई भी पूछ सकता है कि
''बताओ बाजार में इसकी
बोली कितनी लगी है
रिजर्व प्राइज कितनी बनी है'
क्या जवाब होगा उनका उस समय
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Tuesday, 19 February 2008

भरोसा-शायरी

किस पर कितना भरोसा करें
यह अक्सर सोचते
पर हम कितना भरोसे लायक हैं
इस सोच से मुहँ मोड़ते
भरोसा कोई पेड़ पर लटकी चीज नहीं
जो हर किसी को मिल जाये
भला वह फल कहाँ से आये
जिसका पेड़ हम खुद नहीं बोते
केवल पाने के लिए रोते
दूसरों की शिकायत खूब करते
पर हमने कभी सोचा है
कितनों का भरोसा हम तोड़ते
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Monday, 18 February 2008

अक्ल की कोई नहीं है गिनती- शायरी

जगह-जगह खुली हैं

लोगों को भरमाने के लिए दूकान

कोई चीज हाथ में नहीं मिलती

बस मोबाइल का बटन दबाते जाओ

अपनी पसंद के चेहरे के नाम पर मुहर लगाओ

कराओ खर्च करने वालों में गिनती

न पास की और न बात फेल की

चर्चा है हवा के खेल की

अक्ल से कोई वास्ता नहीं

उसकी तो कोई नहीं है गिनती

Sunday, 17 February 2008

मन है आवारा-शायरी

यूं तो हर आदमी है
जिन्दगी में अकेला आवारा
कितने बडे महल बना ले
अपनी आँगन में चाहे
जितने सुन्दर बाग़ सजा ले
मन तो उसका भटकता है
जैसे कोई हो बंजारा
कितनी भीड़ जुटा लेता है
लोग और सामानों की
भयभीत रहता है कि कहीं
हो न जाऊं अकेला
भागते-भागते जब थक जाता है
तब अपने को ही लगता है बिचारा
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फिर नही होंगे हादसे-हास्य कविता

यूं तो होते हैं हर रोज हादसे
वह इसलिए नजर आते
क्योंकि हम उनसे बचकर घर आ जाते
पर जब कोई हो जायेगा हमारे साथ
उठा ले जायेगा अपने हाथ
फिर नहीं दिखाई देंगे अपनी जिन्दगी में हादसे
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