Monday, 10 March 2008

इंसान क्यों शेर कहलाना चाहता है-दो हिंदी क्षणिकाओं

इंसान कभी इंसान बनकर नहीं रहना चाहता
किसी पराये का भला करता नहीं
किसी बेबस को सहारा देता नहीं
किसी के मन के दर्द का हाल लेता नहीं
पर फिर भी फरिश्ता कहलाना चाहता
पंजों में नाखून नहीं है जो
किसी पर अत्याचार होने से रोक सके
पंजों में वह ताकत नहीं है कि
किसी के कत्ल करने से पहले टोक सके
करता है तब
जहर भरे शब्दों की बौछार
लोग डरें और सहम जाएं
अपने इलाके की सीमाओं को जानता नहीं
पाल लेता हैं इंसानों के भेष में भेडिये
कर देता हैं खडा अपनी गुफा के बाहर पहरे पर
और इलाके का शेर कहलाना चाहता है
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अपने इलाके का शेर कहलाते हुए
कुछ लोगों का सीना फूल जाता है
उन्हें पता नहीं कितना भी बड़ा शेर हो
कभी न कभी उसका शिकार हो जाता है
कोई दूसरा शेर न करें तो
ऊपर वाले का तीर चल जाता है
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2 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बेहतरीनौर खरी रचनाए ंप्रेषित की हैं ।बधाई स्वीकारें।

Anonymous said...

yar mastram sabse mushkil hai admi banana. sher kahlana aur sher kahna to bahut aasan hai
fir bhi rachna achchhi hai
badhai